जीवन विद्या- अध्ययन बिन्दु (अध्याय:, संस्करण:2011, मुद्रण-2016 , पेज नंबर:)
- ऐसे ज्ञान (अस्तित्व दर्शन ज्ञान, जीवन ज्ञान, मानवीयतापूर्ण आचरण ज्ञान ) का लोकव्यापीकरण करने के क्रम में कार्यक्रम:-
- लोक शिक्षा के रूप में जीवन विद्या
- मानवीय शिक्षा संस्कार के लिए-शिक्षा का मानवीकरण
- परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था सहज प्रमाण (पेज नंबर:15)
- शिक्षा-संस्कार व्यवस्था (पेज नंबर:27)
- मानवीय शिक्षा संस्कार सुलभता (पेज नंबर:28)
- मानवीय शिक्षा संस्कार कार्य (पेज नंबर:29)
- मानवीय शिक्षा संस्कार समिति (पेज नंबर:30)
- मानवीय शिक्षा-नीति का प्रारूप
1. आधार –1-1 यह प्रारूप मध्यस्थ दर्शन (सह-अस्तित्व वाद) पर आधारित है| यह दर्शन चार भागों में है-1. मानव व्यवहार दर्शन2. मानव कर्म दर्शन3. मानव अभ्यास दर्शन4. मानव अनुभव दर्शन2. मानवीय शिक्षा प्रवर्तन कारण-2-1 वर्तमान में मनुष्य में पाई जाने वाली सामाजिक (धार्मिक), आर्थिक एवं राजनैतिक विषमताएं ही समरोन्मुखता का कारण है|3.प्रस्तावना-जीव चेतना से मानव चेतना में परिवर्तन3-1 मानवीयता की सीमा में धार्मिक (सामाजिक), आर्थिक, राज्यनैतिक समन्वयता रहेगी, क्योंकि प्रत्येक मनुष्य प्राप्त अर्थ का सदुपयोग एवं सुरक्षा चाहता है| अर्थ की सदुपयोगात्मक नीति ही धर्म नीति, सुरक्षात्मक नीति ही राज्यनीति है| अर्थ के सदुपयोग के बिना सुरक्षा एवं सुरक्षा के बिना सदुपयोग सिद्ध नहीं है| इसी सत्यतावश मानव धार्मिक, आर्थिक, राज्यनैतिक पद्धति व प्रणाली से सम्पन्न होने के लिए बाध्य है|4. उद्देश्य-4-1 मानवीय चेतनवादी शैली को स्थापित करना|4-2 मानवीयता की अक्षुण्णता हेतु मानवीय संस्कृति, सभ्यता तथा उसकी स्थापना एवं संरक्षण हेतु विधि व व्यवस्था का अध्ययन पूर्वक प्रमाणित कराना है इससे मनुष्य के चारों आयामों (व्यवसाय, व्यवहार, विचार एवं अनुभूति ) तथा पाँचों स्थितियों (व्यक्ति, परिवार, समाज, राष्ट्र एवं अंतर्राष्ट्र) की एक सूत्रता, तारतम्यता एवं अनन्यता प्रत्यक्ष हो सकेगी| फलस्वरूप समाधानात्मक भौतिकवाद, व्यवहारात्मक जनवाद एवं अनुभवात्मक अध्यात्मवाद मनुष्य जीवन में चरितार्थ एवं सर्वसुलभ हो सकेगा| यही प्रत्येक मनुष्य की प्रत्येक स्थित में बौद्धिक समाधान एवं भौतिक समृद्धि है और साथ ही यह मानव का अभीष्ट भी है|4-3 व्यक्तित्व एवं प्रतिभा के संतुलित उदय को पाना|4-4 समस्त प्रकार की वर्ग भावनाओं को मानवीय चेतना में परिवर्तन करना|4-5 सहअस्तित्व एवं समाधानपूर्ण सामाजिक चेतना को सर्वसुलभ करना|4-6 प्रत्येक व्यक्ति जन्म से ही न्याय का याचक है एवं सही करना चाहता है| उसे न्याय प्रदायी क्षमता तथा सही करने की योग्यता प्रदान करना|4-7 प्रत्येक मनुष्य जीवन में अनिवार्यता एवं आवश्यकता के रूप में पाये जाने वाले बौद्धिक समाधान एवं भौतिक समृद्धि की समन्वयता को स्थापित करना|4-8 शिक्षा प्रणाली, पद्धति एवं व्यवस्था की एक सूत्रता को मानवीयता की सीमा में स्थापित करना|4-9 प्रकृति में विकास क्रम, विकास, जागृति क्रम, जागृति एवं इतिहास के आनुषंगिक मनुष्य, मनुष्य जीवन लक्ष्य, जीवन में समाधान तथा जीवन के कार्यक्रम को स्पष्ट तथा अध्ययन सुलभ करना|4-10 विश्वविद्यालय, महाविद्यालय, विद्यालय, शाला एवं शिक्षा मंदिरों की गुणात्मक एकता एवं एक सूत्रता को स्थापित करना|4-11 उन्नत मनोविज्ञान के संदर्भ में निरंतर शोध एवं अनुसंधान व्यवस्था को प्रस्थापित करना|4-12 प्रत्येक विद्यार्थी और व्यक्ति को अखंड समाज के भागीदार के रूप में प्रतिष्ठित करना|4-13 शिक्षक, शिक्षार्थी एवं अभिभावक की तारताम्यता को व्यवहार शिक्षा के आधार पर स्थापित करना|4-14 विगत वर्तमान एवं आगत पीढ़ी की परंपरा के प्रतीक स्तर में तारताम्यता, एकसूत्रता, सौजन्यता, सहकारिता, दायित्व तथा कर्तव्यपालन योग्य क्षमता का निर्माण करना|4-15 मानवीय संस्कृति, सभ्यता, विधि एवं व्यवस्था संबंधी शिक्षा को सर्वसुलभ बनाना|4-16 प्रत्येक मनुष्य में अधिक उत्पादन एवं कम उपभोग योग्य क्षमता को प्रस्थापित करना|4-17 व्यक्ति व प्रतिभा सम्पन्न स्थानीय व्यक्तियों के संपर्क में शिक्षार्थियों एवं शिक्षकों को लाने की व्यवस्था प्रदान करना|5 वस्तु विषय प्रणाली5-1 शिक्षा के सभी विषयों को सभी स्तरों में उद्देश्य की पूर्ति हेतु बोधगम्य एवं सर्व सुलभ बनाने, सार्वभौम नीतित्रय (धार्मिक, आर्थिक, राज्यनैतिक) में दृढ़ता एवं निष्ठा स्थापित करने तथा वर्तमान में पढ़ाये जाने वाले प्रत्येक विषय को समग्रता से संबद्ध रहने के लिए:-क. विज्ञान के साथ चैतन्य पक्ष का|ख. मनोविज्ञान के साथ संकार पक्ष का|ग. दर्शनशास्त्र के साथ क्रिया पक्ष का|घ. अर्थशास्त्र के साथ प्रकृतिक एवं वैकृतिक ऐश्वर्य की सदुपयोगात्मक एवं सुरक्षात्मक नीति पक्ष का|ङ. राज्यनीति शास्त्र के साथ मानवीयता के संरक्षणात्मक तथा संवर्धानात्मक नीतिपक्ष का|च. समाज शास्त्र के साथ मानवीय संस्कृति व सभ्यता पक्ष का|छ. भूगोल और इतिहास के साथ मानव तथा मानवीयता का|ज. साहित्य के साथ तात्विक पक्ष का अध्ययन अनिवार्य है|6 तकनीकी शिक्षण-6-1 उत्पादन एवं निर्माण शक्ति की विपुलता के लिए निपुणता एवं कुशलता को पूर्णतया प्रशिक्षित कराने के लिए समृद्ध प्रणाली, व्यवस्था एवं अध्ययन रहेगा जिससे मनुष्य की समान्य आकांक्षा एवं महत्वाकांक्षा से संबन्धित वस्तुओं का निर्माण सुगमता पूर्वक हो सके|6-2 तकनीकी शिक्षण के साथ सामाजिकता तथा व्यक्ति में निष्ठा को व्यवहारिक रूप देने की व्यवस्था एवं व्यवस्था एवं प्रणाली अध्ययन के रूप में रहेगी|6-3 शिक्षा के स्तर में अतिमानवीयता पूर्ण जीवन की संभावना को स्पष्ट करने योग्य अध्ययन रहेगा|6-4 प्रत्येक विद्यार्थी को उत्पादन क्षमता में निष्णात बनाने के लिए अध्ययन होगा, जिससे अधिक उत्पादन एवं कम उपभोग सम्पन्न हो सके|6-5 तकनीकी अध्ययन के साथ व्यवहारिक अध्ययन अनिवार्य रूप में रहेगा जिससे प्रत्येक व्यक्ति उद्दमशील एवं सामाजिक सिद्ध हो सके|6-6 कृषि, उद्योग व स्वास्थ्य संबंधी पूर्ण तकनीकी शिक्षा प्रत्यक्ष रूप से रहगी न कि औपचारिक रूप में रहेगी|7 शिष्ट मण्डल-7-1 प्रत्येक राष्ट्रीय स्तर में एक शिष्ट मण्डल रहेगा जिसमें शोध एवं अनुसंधान कर्ताओं का समावेश रहेगा| यही राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय शिष्टमंडल शिक्षा नीति प्रणाली तथा पद्धति की पूर्णता एवं दृढ़ता के प्रति दायित्व वहन का सजगता पूर्वक निर्वाह करेगा|7-2 यही मण्डल वैध सीमा में शिक्षण संस्थाओं के दायित्वों का निर्धारण, दिशा-निर्देश, पद्धति तथा प्रणाली संबंधी आदेश देने का अधिकारी होगा|7-3 इनके द्वारा दी गई प्रस्तावनाएं शासन- सदन द्वारा सम्मति पाने के लिए बाध्य रहेगी|7-4 शिक्षा संबंधी गुणात्मक परिवर्तन के लिए उपयुक्त प्रस्तावनाधिकार इसी मंडल में समाहित रहेगा|7-5 व्यक्तिगत रूप में प्राप्त प्रस्तावनाओं को अवगाहन करने की व्यवस्था रहेगी| साथ ही उनके लिए सम्मान व पुरस्कार प्रदान करने की व्यवस्था भी रहेगी| जिससे व्यक्तिगत प्रतिभा के प्रति विश्वास हो सके|7-6 प्रत्येक राष्ट्र का शिष्ट मंडल मानवीयता की सीमा में ही शिक्षा नीति, प्रणाली एवं पद्धति का प्रस्ताव करेगा जिससे मंडलों में परस्पर विरोध न हो सके|7-7 शिक्षा की सार्वभौमिकता की अक्षुण्णता के लिए अंतर्राष्ट्रीय शिष्ट मंडल रहेगा जिससे अखंड समाज की निरंतरता बनी रहे|8 व्यवस्था –8-1 प्रत्येक शिक्षण संस्था अपने क्षेत्र में प्रौढ़ व्यक्तियों को साक्षर बनाने तथा प्रत्येक बालक-बालिका को शिक्षा प्रदान करने के लिए उत्तरदाई होगा|8-2 प्रत्येक पद में दायित्व शिष्ट मंडल द्वारा निर्धारित रहेगा|8-3 संस्थाओं का दायित्व व निर्वाह-पद्धति, प्रत्येक शिक्षण संस्था अपने कार्यक्षेत्र में पाई जाने वाली सामाजिक, आर्थिक, राज्यनैतिक और व्यवहारिक व्यवस्था की परस्परता में समस्याओं का सर्वेक्षण करने की व्यवस्था करेगी| साथ ही वैध प्रणाली पद्धति नीति व व्यवस्था का पालन करने के लिए उत्तरदायी रहेगी|8-4 स्थानीय स्थिति के चित्रणाधिकार का दायित्व स्थानीय संस्था का होगा|8-5 प्रत्येक सर्वेक्षण पूर्ण चित्रण स्तर के अधिकारियों द्वारा सम्पन्न किया जाएगा उसका परीक्षण करने का अधिकार उनसे वरिष्ठ अधिकारी को होगा| जिससे ही-
भूमि स्वर्ग होगी | मनुष्य ही देवता होंगे ||धर्म सफल होगा | नित्य मंगल ही होगा ||
(पेज नंबर: 32-36)
स्त्रोत: अस्तित्व मूलक मानव केन्द्रित चिंतन सहज मध्यस्थ दर्शन (सहअस्तित्ववाद)
प्रणेता - श्रद्धेय श्री ए. नागराज
No comments:
Post a Comment