विकल्प (अध्याय:, संस्करण:2011,मुद्रण- 2016, पेज नंबर:)
- जीव चेतना का प्रमाण धरती पर सभी संविधानों में गलती को गलती से रोकना, अपराध को अपराध से रोकना, युद्घ को युद्घ से रोकना के स्वरुप में देखने को मिला। इसे वैध माना।
शिक्षा में लाभोन्माद, कामोन्माद, भोगोन्मादी कार्य व्यवहार के लिए प्रोत्साहन देना।सभी प्रकार के प्रचार माध्यम भय और प्रलोभन के अर्थ में कार्यरत है यही मानव जाति की हैसियत है ऐसा मुझे समझ में आया। (अध्याय:, पेज नंबर:6)
- चेतना विकास मूल्य शिक्षा संस्कार सहित तकनीकी शिक्षण विधि से ही हर परिवार अखण्ड समाज सूत्र व्याख्या तथा सार्वभौम व्यवस्था सूत्र व्याख्या रुप में जीना ही समाधान समृद्घि अभय सहअस्तित्व सहज परंपरा वैभवित होना यही अपराध मुक्त परम्परा होना समीचीन है।
हर नर नारी स्वयं में नियम नियंत्रण संतुलन न्याय धर्म सत्यसहज प्रमाणरुप में वर्तमान वैभव होना आवश्यक है। (अध्याय:, पेज नंबर:9)
- 23. चेतना विकास मूल्य शिक्षा रुप में अध्ययन के लिए अस्तित्वमूलक मानव केंद्रित चिंतन ही मध्यस्थ दर्शन चार भागों में -
- मानव व्यवहार दर्शन
- मानव कर्म दर्शन
- मानव अभ्यास दर्शन
- मानव अनुभव दर्शन
- 24. दर्शनों पर आधारित विचार-वाद तीन भागों में -
- समाधानात्मक भौतिकवाद
- वहारात्मक जनवाद
- अनुभवात्मक अध्यात्मवाद
- 25. दर्शन-वाद के आधार पर शास्त्र तीन भागों में -
- आवर्तनशील अर्थशास्त्र
- व्यवहारवादी समाजशास्त्र
- मानव संचेतनावादी मनोविज्ञान शास्त्र
- 26. चिंतन - दर्शन-वाद-शास्त्र के आधार पर
जीवन विद्या प्रबोधन प्रणाली स्पष्ट है।मानवीय आचार संहिता रुपी ‘संविधान व्यवस्था’ (प्रकाशन प्रक्रिया में) अध्ययन के लिए प्रावधानित है, प्रस्तुत है।
- 27. इसी के साथ ‘परिभाषा संहिता’ प्रस्तुत है।(अध्याय:, पेज नंबर:9)
- 79. मूल्य शिक्षा :-जीवन मूल्य - मानवमूल्य - स्थापित मूल्य-शिष्ट मूल्य उपयोगिता मूल्य-कला मूल्यों का कर्माभ्यास व्यवहाराभ्यास कराने वाला शिक्षा कार्यक्रम।(अध्याय:, संस्करण:2011, पेज नंबर:21)
- 126. शिक्षा-संस्कार :- ज्ञान, विवेक विज्ञान सम्पन्नता ।(अध्याय:, संस्करण:2011, पेज नंबर:27)
स्त्रोत: अस्तित्व मूलक मानव केन्द्रित चिंतन सहज मध्यस्थ दर्शन (सहअस्तित्ववाद)
प्रणेता - श्रद्धेय श्री ए. नागराज
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