परिभाषा:
- सर्वतोमुखी समाधान और प्रामाणिकता का वर्तमान और उसकी निरंतरता। (पेज नंबर: 151)
- शिष्टता पूर्ण दृष्टि का उदय का प्रक्रिया।
- अस्तित्व में जीवन सहज मूल्य, मानव मूल्य, व्यवसाय मूल्य, स्थापित मूल्य एवं शिष्ट मूल्य के प्रति निर्भ्रम जानकारी सहित व्यवसाय, व्यवहार चेतना की परिष्कृति| (परिभाषा संहिता: संस्करण: 2012 : मुद्रण: 2016, पेज नंबर:219)
- उन्मादत्रय शिक्षा - लाभोन्मादी अर्थशास्त्र, भोगोन्मादी समाज शास्त्र और कामोन्मादी मनोविज्ञान का प्रवर्तन क्रिया कलाप। (पेज नंबर: 48 )
- मानवीय शिक्षा - अस्तित्व, विकास, जीवन, जीवन-जागृति रासायनिक एवं भौतिक रचना, विरचना का अध्ययन।
- सर्वतोमुखी समाधान और प्रामाणिकता का वर्तमान और उसकी निरंतरता। (पेज नंबर: 151)
- शिक्षा नीति - सहअस्तित्व बोध, जीवन बोध, मानवीयतापूर्ण आचरण बोध सहित मानव लक्ष्य बोध, जीवन मूल्य बोध, लक्ष्य सफलता के लिए निश्चित दिशा बोध कराने के साथ - साथ स्वयं में विश्वास श्रेष्ठता का सम्मान, प्रतिभा और व्यक्तित्व में संतुलन व्यवहार में सामाजिक, उत्पादन में स्वावलंबन का बोध सर्व सुलभ होना। यहाँ बोध का तात्पर्य जीवन में समझने, स्वीकारने से है| (पेज नंबर:219 )
- शिक्षण - शिक्षापूर्ण दृष्टि सहज विकास, जागृति की ओर दिशा, अध्ययनपूर्वक यथार्थ बोध निपुणता कुशलता, पांडित्य सहज शिक्षण। (पेज नंबर:219)
- शिष्य- जिज्ञासु, मानवीय शिक्षा संस्कार को ग्रहण करने के लिए तत्पर। (पेज नंबर: 219)
- शिक्षा संस्कार - ज्ञान विवेक विज्ञान सहज बोध होना। (समझ में आना, स्वीकार होना ) (पेज नंबर:219)
- मानव व्यवहार दर्शन
- मानव कर्म दर्शन
- मानव अभ्यास दर्शन
- मानव अनुभव दर्शन
- समाधानात्मक भौतिकवाद
- व्यवहार जनवाद
- अनुभवात्मक अध्यात्मवाद
- व्यवहारवादी समाजशास्त्र
- आवर्तनशील अर्थशास्त्र
- मानव संचेतनावादी मनोविज्ञान
- मानवीय संविधान सूत्र व्याख्या
- जीवन विद्या –एक परिचय
- विकल्प
- जीवन विद्या- अध्ययन बिन्दु
- मानवीय आचरण सूत्र
- संवाद- 1
- संवाद-2
- श्री ए. नागराज जी द्वारा दिया गया पाठ्यक्रम
- चेतना विकास मूल्य शिक्षा का लघु प्रस्ताव (मानवीय शिक्षा-नीति का प्रारूप)
- 10 सोपानीय व्यवस्था के अंतर्गत शिक्षा संस्कार
- "शिक्षा" पर केन्द्रित मुख्य बातें (मध्यस्थ दर्शन (सहअस्तित्ववाद) वाङ्ग्मय में से)
नोट- (सभी संदर्भ संबन्धित पुस्तकों के PDF से लिए गए हैं कोई भी अंतर होने पर कृपया मूल वांगमय को ही सही माना जाए। )
स्त्रोत: अस्तित्व मूलक मानव केन्द्रित चिंतन सहज मध्यस्थ दर्शन (सहअस्तित्ववाद)
प्रणेता - श्रद्धेय श्री ए. नागराज
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